हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, निम्नलिखित हदीस को "एलालुश शराए" पुस्तक से लिया गया है। इस हदीस का पाठ इस प्रकार है:
قال الامام الحسین علیہ السلام:
اَيُّهَا النّاسُ! اِنَّ اللّه َ جَلَّ ذِكْرُهُ ماخَلَقَ الْعِبادَ اِلاّ لِيَعْرِفُوهُ، فَاِذا عَرَفُوهُ عَبَدُوهُ، فَإذا عَبَدُوهُ اسْتَغْنُوا بِعِبادَتِهِ عَنْ عِبادَةِ ماسِواهُ. فَقالَ لَهُ رَجُلٌ: يَابْنَ رَسُولِ اللّه ِ بِأَبى أَنْتَ وَاُمّي فَما مَعْرِفَةُ اللّه ِ؟ قالَ: «مَعْرِفَةُ أَهْلِ كُلِّ زَمانٍ إِمامَهُمْ اَلَّذى يَجِبُ عَلَيْهِمْ طاعَتُهُ.»
हज़रत इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमाया:
हे लोगों! सर्वशक्तिमान ईश्वर ने बंदो को केवल इसलिए बनाया ताकि वे उसके बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकें और जब उन्हें ज्ञान प्राप्त हो तो उसकी इबादत करें। जब वे उसकी इबादत करेंगे, तो वे उसके अलावा किसी अन्य की इबादत करने से मुक्त हो जायेंगे।
तो एक शख़्स ने पूछाः मेरे माता-पिता, आप पर क़ुरबान हो, अल्लाह का ज्ञान क्या है?
इमाम ने फऱमाया: उन पर हर युग में अपने इमाम (केवल अल्लाह का ज्ञान) को पहचानना और जानना अनिवार्य है।
एलालुश शराए, पेज 9